Rajasthan Panchayat Elections: राजस्थान हाई कोर्ट ने सरकार को दिया तगड़ा झटका, पंचायत चुनाव टालने पर कह दी ये बात
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Rajasthan Panchayat Elections: राजस्थान हाईकोर्ट ने परिसीमन के नाम पर पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव टालने के मामले में सोमवार को राज्य सरकार को तगड़ा झटका दिया। कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी की कि चुनाव के लिए समय सीमा तय होने के बावजूद उसकी पालना नहीं करना संविधान के उल्लंघन का प्रत्यक्ष उदाहरण है।
संवैधानिक समय सीमा के भीतर चुनाव हों, नहीं तो आयोग दखल करे
यदि सरकार चुनाव नहीं कराए तो राज्य निर्वाचन आयोग का दायित्व है कि वह लोकतांत्रिक स्थानीय शासन की बहाली के लिए दखल करे। चुनाव नहीं होने से स्थानीय शासन में रिक्तता आती है, जिसका सेवाओं की प्रदायगी पर विपरीत असर होता है। कोर्ट ने उम्मीद जताई कि सरकार जल्द चुनाव कराएगी। कोर्ट ने बिना प्रक्रिया अपनाए निलम्बित पंचायत प्रशासकों को बहाल कर दिया, वहीं कानूनी प्रक्रिया अपनाकर पुन: कार्रवाई की छूट दी।
मुख्य सचिव एवं निर्वाचन आयोग को भेजी आदेश की कॉपी
न्यायाधीश अनूप कुमार ढंड ने महावीर प्रसाद गौतम व अन्य की 17 याचिकाओं पर यह आदेश दिया। कोर्ट ने इस मामले में त्वरित कार्रवाई के लिए मुख्य सचिव एवं निर्वाचन आयोग को आदेश की कॉपी भी भेजी है। Rajasthan Panchayat Elections
पांच साल के भीतर पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव कराना आवश्यक
कोर्ट ने कहा कि पंचायती राज संस्थाओं के पांच साल के भीतर चुनाव कराना आवश्यक है, चुनाव केवल 6 माह तक टाले जा सकते हैं। राज्य सरकार परिसीमन प्रक्रिया समय रहते पूरी कर संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार समय पर चुनाव कराने के लिए बाध्य है।
याचिकाकर्ताओं का पक्ष सुनने के बाद कार्रवाई की छूट दी
सरकार ने निवर्तमान सरपंचों को पंचायतों के कार्य प्रबंधन के लिए प्रशासक लगाया, लेकिन बाद में तय प्रक्रिया का पालन किए बिना हटा दिया। कोर्ट ने इनको बहाल कर दो माह में याचिकाकर्ताओं का पक्ष सुनने के बाद कार्रवाई की छूट दी।
निलम्बित प्रशासकों को बहाल किया
याचिकाओं में कहा गया कि सरपंचों का कार्यकाल पूरा होने के बाद विभाग ने चुनाव में देरी को देखते हुए 16 जनवरी को अधिसूचना जारी कर निवर्तमान सरपंचों को प्रशासक लगा दिया। बाद में बिना जांच और सुनवाई का मौका दिए बगैर प्रशासक पद से हटा दिया। याचिका में नियुक्ति को वैध बताते हुए उन्हें हटाने की कार्रवाई को अवैध बताया। राज्य सरकार ने विरोध करते हुए कहा कि याचिकाकर्ताओं का प्रशासक पद पर बने रहने का संवैधानिक अधिकार नहीं है। उनका पांच साल का कार्यकाल पूरा हो चुका था और जांच लंबित है। ऐसे में याचिकाओं को खारिज किया जाए।
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